जितना क़रीब जा रहा हूँ मैं अब, उलझता जा रहा हूँ,
प्रिय तुम्हारे दिल के उस गलियारे में घुमाव ज़्यादा है !
मुझे पता भी न चला तो ख़फ़ा भी हो गई हो क्योंकि,
लगता है ख़फ़ायगी की तरफ़ तेरा खिंचाव ज़्यादा है !
साथ चलना है अहमद को मगर तेरे तरफ़ से ही मनाही है,
ऐ इश्क़ लग रहा है कि तुझ में अब ठहराव ज़्यादा है !
लड़खड़ाते हुए क़दम हमारे गवाही दे रहे हैं राहों का,
इश्क़ की मंज़िल की राहों में उतार-चढ़ाव ज़्यादा है !
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