रब कि रज़ा में राजी ।
दुःख दर्द दवा जो मिले
सर झुका, सब कबूल, और हाँ जी, हाँ जी ।।
हर हद, हद से गुज़री,
सारी हदे जाने मेरा मुर्शिद, मौला, काज़ी ।।
मैं चाहे चौला पहन मलंग हुई,
चाहे हवन दस्ती में भस्म हुई ,
मेरे "जी" की किसे परवाह जी । * जी = मन
अब जिरह चले समय से, *जिरह = बहस
क्यों मेरा "जी", हाँ जी
क्यों मेरा "जी" हुआ दूर दराज़ी ।। *जी = पिया, प्रिय, प्यारा
किसी को मिली मोहब्बत 2 कदम की दूरी पर,
किसी कि उम्र भर का सफर और अबासीन दरिया जी ।। *अबासीन = सिंधु नदी (पास्तो मे)
"पी" की खबर सुनकर गद-गद हुई, * पी = प्रिय,
मैं भागी - दोड़ी, बेसुध, राजी - राजी ।।
बगिया की हूँ काली सी मैं,
आँगना में फिरू साजी - साजी ।।
सांवरे नैन निहारे हर राह जी,
जाने किस राह से गुज़रे मेरे शाह जी ।।
लेखक :- हनी "आवारा"
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