गीले बहुत थे मगर बार बार क्या करते..!!
तेरी ही ज़फ़ा पे तुझे शर्सार क्या करते ...!!
गर्मी पर आ गयी हैं नज़र चस्मे यार की ।
तक़दीर लड़ गयी है दिल दाग दार की ।।
मज़बूरिया हयात की, सबर आजमा नहीं,
लग जाती है कभी नज़र भी इख़्तेयार की ।।
शर्मिंदा और गुन्हा की इज़त न पूछिये,
शर्मिंदगी से बनी बात फिर शर्मशार की ।।
सागर छलक उठेंगा अभी महताब का,
हसरत से ताक रही नज़र मयगुसार की ।।