गर्मी पर आ गयी हैं नज़र चस्मे यार की ।
तक़दीर लड़ गयी है दिल दाग दार की ।।
मज़बूरिया हयात की, सबर आजमा नहीं,
लग जाती है कभी नज़र भी इख़्तेयार की ।।
शर्मिंदा और गुन्हा की इज़त न पूछिये,
शर्मिंदगी से बनी बात फिर शर्मशार की ।।
सागर छलक उठेंगा अभी महताब का,
हसरत से ताक रही नज़र मयगुसार की ।।
इंकार कर के तुमने हमे शाद कर दिया,
हर आरजू तुम्हारी नही पर निसार की ।।
इसमें मज़ा है लज़्ज़ते दीदार में सिवा,
कैसी हवा बंधी है तुम्हारे दीदार की ।।
नाकाम जुस्तजू में गुजरी जो शोक ने
हमने तो वो घडी भी ग़नीमत शुमार की ।।
बैठि है उड के शान से अबरू ए यार पर,
आल्हा रे... शौकते मेरी मुस्ते गुबार की ।।
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