तेरी हर बात मान ली, हमने तेरी रजा जान ली।
ये ही के तेरे इंकार की वजह जान ली।
बाद-लिहाज़ी भी हमने
इश्क़ का इकराम मान ली।
चलो फर्ज किया हमने के तेरी ख़ुशी नहीं माँगी ,
तो फिर कैसे खुदा ने तेरे हक़ में मेरी दुआ मान ली।
और रही बात हक़ कि तो लतीफ़ा ओर अकबार किया ,
तवज्ज़ो, दिले आमादा, सब पैंतरे हक़ है ,
ये छिपी बात मेरी तुने कैसे जान ली।
महरूमी जलवा तेरा गुलाब है या काँटा कोई ,
अलबत्ता शुक्र हैं मेरे मोला का
के हमने इनसे रिहा होने की ठान ली।
तुम्हरा मसला मुहब्बत के दड्बे में क़ैद का नहीं ,
April 4, 2019
Written by :- Honey A. Dhara
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