वो जाना पहचाना स्वाद रोटी का।
पर अब हालत कुछ और है हनी।
धारा क्या जायज़ा देगी डूबी किस्ती का।
जैसे बचपन के उस दौर में ,
सब दिक्कते, सब परेशानी छू हो जाती थी।
अगर फिर से अपने वो ही दुलार करे ,
तो मेरे सब दुःख दर्द, सब मुसीबते आसान हो जानी थी।
मैं ही जानता हु के में कैसे फड़फड़ाऊ।
हुजूम ,हिज़र इस कदर है के ,
मैं सा तलक ना ले पाऊ।
पर कोई ना अप्पा नु करना chill है।
ऐतकी स्टेमिना कित्ता पूरा fill है।
जो मुझे निकम्मा बताते है।
हर्ज़ जताते है , प्यार छुपाते है।
देखना मैं ऐसा कुछ कर जाऊंगा।
एक राह इस जमी से आसमा तक बनाऊंगा।
फिर गरजते बादलो को चुप कराऊंगा।
तपती धुप को चीर दिखाऊंगा।
आँधियो को कहके दीप जलाऊंगा।
अपने मुझपे फ़क़्र करेंगे, मैं ऐसा कुछ कर जाऊंगा।
Written by :- Honey A. Dhara
July 05 , 2019
July 05 , 2019
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