Sunday, May 17, 2020

मैं रोज़ आँखों

मैं रोज़ आँखों से पानी बहता हूँ,
ये सोचकर के सफर सुनहरा है... 
मगर कोई नज़राना नहीं। 

में कभी सोचता हूँ.... 
के ये कैसी लो है कंदील के जैसी,
जिसमे बदन का जलना तो पसंद है, 
मगर सुलगना नहीं। 

मैं कभी सोचता हूँ के .... 
ये कैसी रात है जो कटती नहीं, 
जिसमे मुझे आँखे तो बंद करनी हैं 
मगर सोना नहीं। 

कभी सोचता हूँ......  
मुझे घर से तो नकलना है ,
पर क्या आँखों में सपना नहीं। 

कभी सोचता हूँ। ...... 
क्या मेरे अपने मेरे साथ खड़े है, 
पर सच झूठ है बहाना नहीं।

कभी सोचता हूँ। ....  
के अगर वो मिल जाये किसी मोड़ पर ,
उसे सब कुछ कह दूंगा साँसे साँसो में उलझा दूँगा,
 मगर ऐसा कोई फशाना नहीं। 

Monday, May 11, 2020

कोई जोर नहीं चलता


किसी की चीज पर मेरा,

कोई जोर नहीं चलता !
अपना वस, अपने पे चलता है,
कहीं ओर नहीं चलता !
££ ££ ©©©©
ये तो वक्त हैं बदलना फिदरत इसकी,
सदा किसी का दौर नहीं चलता !
&& && ©©©
जाना था गाँव मगर
फसकर रह गया हनी,
लॉक डाऊन में कोई वाहन
हरामखौर नहीं चलता !
©© ©©© ©©©©
और ऐसा क्या है तुझमें ऐ ज़ालिम,
जो तेरे सिवा इस दिल में,
कोई हौर नहीं चलता !
..©©©®®



Written by :- Honey A. Dhara
May 12 , 2020

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