वो अक्शर मुझे आज़माते है !
मैं दामन फैलाऊँ आसमाँ सा ,
वो मुझे क़तरा मिट्टी का समझ उड़ाते है !
हर बार उनकी अदा में ताज़गी होती है '
जुल्फे बसन्त बन, मचलरी होती है !
मै बन पानी रंग मिलना चाहू किनारो से,
वो मेघ बनकर बूँद सा मुझे फलक से गिराते है !
Dec. 22, 2018
Written by Honey A Dhara
honeyadhara.blogspot.com
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