Tuesday, June 11, 2019

शाकि ।

शाकि ।


हमको हमसे मिला दो ना शाकि । 
थोड़ी और पीला दो ना शाकि। 
मेरा दिल बैठा जा रहा है ,
एक दफा नज़रे मिला दो ना  शाकि । 

तेरे मैख़ाने में बढ़ रही है तिश्नगी,
कुछेक पैमाने और छलका दो ना शाकि । 

वही तलब है अभी तक कुछ भी राहत नहीं ,
नज़रो से ही पीला दो न शाकि । 

ऐसे तो ना गुज़रो वक़्त जैसे ,
कुछ वक़्त मेरे लिए निकालो न शाकि । 

वजूद तो मिटा चुके हो मेरा तुम ,
यादो में तो रहने दो ना शाकि । 

आखिर तलब क्यों नहीं कम होती हनी ,
क्या तूने प्यास मिलाई  है पैमाने में ,
अब बता भी दो ना शाकि  




June 11, 2019
Written by :- Honey A. Dhara
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