शाकि ।
हमको हमसे मिला दो ना शाकि ।
मेरा दिल बैठा जा रहा है ,
एक दफा नज़रे मिला दो ना शाकि ।
तेरे मैख़ाने में बढ़ रही है तिश्नगी,
कुछेक पैमाने और छलका दो ना शाकि ।
वही तलब है अभी तक कुछ भी राहत नहीं ,
नज़रो से ही पीला दो न शाकि ।
ऐसे तो ना गुज़रो वक़्त जैसे ,
कुछ वक़्त मेरे लिए निकालो न शाकि ।
वजूद तो मिटा चुके हो मेरा तुम ,
यादो में तो रहने दो ना शाकि ।
आखिर तलब क्यों नहीं कम होती हनी ,
क्या तूने प्यास मिलाई है पैमाने में ,
अब बता भी दो ना शाकि ।
June 11, 2019
Written by :- Honey A. Dhara
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