मुझे मेरी फज़ीहते, सरेआम सी लगे।
जिन्हे समझना भी आसान नहीं
और सहना भी आसान नहीं।
मुझे तेरे आशियाँ की कीमत ,
अपने मकान से कम सी लगे।
हमे जब अपनी कीमत ,
तेरे घर में कम सी लगे।
जिसे खरीदना भी आसान नहीं ,
गवाना मेरी भी आसान नहीं।
किसी रक़म का कोई कर्ज सा लगे।
ये तेरा गुमान ही हमे तेरा मर्ज सा लगे।
जिसे चुकाना भी आसान नहीं ,
और तोडना भी आसान नहीं।
ये तेरी बे -दा - दिली नर्क सी लगे।
अब तो तेरी दरिया - दिली में फर्क़ सा लगे।
जिसमे रहना भी आसान नहीं ,
और जिसके बिना रहना भी आसान नहीं।
फिर भी तेरे इश्क़ का जुनून ,
सिर पे चढा इस क़दर लगे।
मुश्किल है के अब किसी और से नज़र लगे।
और आख़िर में ,
कागज़ पे उतरा वरक सा लगे।
तेरा इश्क़ तो हनी, मख़लूत हरफ़ सा लगे।
जिसे लिखना भी आसान नहीं ,
और पढ़ना भी आसान नहीं।
Written by :- Honey A. Dhara
June 24 , 2019
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