Friday, March 20, 2020

अदभुद शायरी कोरोना वायरस

तुम जो इतना छीके जा रहे हो।
क्या तुम कोरोना छिपा रहे हो। 
गले में खाँसी और मास्क मुँह पर ,
क्या तुम भी इटली से आ रहे हो।

(कैफ आजमी जूनियर ) 

कोई हाथ भी न मिलाएगा ,
जो गले में थोड़ी खराश हो
ये कोरोना 19  का जहर है ,
बड़े फैशले से मिला करो।

( बशीर बद्र  - II  )

नएकमरे में सेनिटाइज़र,
पुराने कौन रखता है।
बिना ग्लोब्ज़ पहने अब
फ्रिज में पानी कौन रखता है।

हमीं एक मास्क मुद्दत से पहने है
अब टॉक वार्ना ,
सलीके से कोरोना की निशानी कौन रखता है।

स्त्रोत :- अख़बार 

कोरोना वायरस शायरी

हजारों मास्क की ख्वाहिश की
हर ख्वाहिश पर दम निकले।

करू जो क्लीन हाथो को तो ,
साबुन हद से कम निकले।

सुना है की जब कोरोना,
तेरे मोहल्ले में आया,
बहुत बेआबरू होकर तेरे
कूचे से हम निकले।

( मिर्ज़ा ग़ालिब द्वितीय )

तुझे आती है खाँसी,
ये बता देती तो अच्छा था।

मेरा तू आईसोलेशन
करा देती तो अच्छा था।

तेरे माथे पे ये आँचल ,
बहुत ही खूब है,
लेकिन इसे कटवा के गर ,
तू मास्क बनवाती तो अच्छा था।

(मज़ाज़ लखनवी  तृतीया )

Monday, March 9, 2020

जब आयी होली रंग भरी -2

पोशाक छिड़कवाँ से हर जा,
तैयारी रंगी पोशो की!
और भीगी जगह रंगो से,
हुई जिनंत सब आगोशो की !!


जब आयी होली रंग भरी

जब आयी होली रंग भरी,
सौ नाज़ो अदा से मटक मटक !
और घूँघट के पट खोल दिए,
वह रूप दिखया चमक चमक !


Saturday, March 7, 2020

शहरे आशोब भाग २ नज़ीर अकबराबादी

कोई पुकारता है पड़ा ‘भेज’ या ‘ख़ुदा’ ।
अब तो हमारा काम थका भेज या ख़ुदा ।
कोई कहे है हाथ उठा भेज या ख़ुदा ।
ले जान अब हमारी तू या भेज या ख़ुदा ।

शहरे आशोब भाग १ नज़ीर अकबराबादी


है अब तो कुछ सुख़न२ का मेरे कारोबार बंद ।

रहती है तबअ३ सोच में लैलो निहार४ बंद ।
दरिया सुख़न की फ़िक्र का है मौज दार बंद ।
हो किस तरह न मुंह में जुबां बार बार बंद ।

बाबा....

बटमार अजल का आ पहुँचा, टक उसको देख डरो बाबा
अब अश्क बहाओ आँखों से और आहें सर्द भरो बाबा
दिल, हाथ उठा इस जीने से, ले बस मन मार, मरो बाबा

रोटियां।

जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियां।
फूली नहीं बदन में समाती हैं रोटियां॥
आंखें परीरुखों से लड़ाती हैं रोटियां।
सीने ऊपर भी हाथ चलाती हैं रोटियां॥

जब लाद चलेगा बंजारा॥

टुक हिर्सो-हवा[1] को छोड़ मियां, मत देस विदेश फिरे मारा।
क़ज़्ज़ाक़[2] अजल[3] का लूटे है, दिन रात बजाकर नक़्क़ारा।

देख बहारें होली की।

जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।

होली की बहार।।

हिन्द के गुलशन में जब आती है होली की बहार।
जांफिशानी चाही कर जाती है होली की बहार।।

एक तरफ से रंग पड़ता, इक तरफ उड़ता गुलाल।
जिन्दगी की लज्जतें लाती हैं, होली की बहार।।

Thursday, March 5, 2020

"मुस्कुरा" देता हूँ..!

बेवक़्त, बेवजह, बेहिसाब
"मुस्कुरा" देता हूँ..!

आधे दुश्मनो को तो


यु ही "हरा" देता हूँ..!

और भले ही लाख रोया हूँ मै.
पर एक दफ़ा तो,
रोते हुए को हँसा देता हूँ..!

Monday, March 2, 2020

है दिल की बात..,
मग़र तुझसे खोल रहा हूँ !

के मैं चुप्पियों में भी,
आज बहुत बोल रहा हूँ !!