Sunday, July 31, 2022

बेवफ़ा कर दे

 ज़मीं पे चाँद, बताएँ कि कैसे लाकर दें।

यही है अच्छा, कि हम प्यार से मना कर दें ।।


ये किताबी गुफ़्तगू है तोड़ना सितारों को,

न होगा हमसे, भले दिल से वो जुदा कर दें ।।


क़सम वो ले लें निभाएँगे गर भरोसा,

नहीं हमें, हिरासत-ए-उल्फ़त से वो रिहा कर दें ।।


मुहब्बतों में रिया का चलन बढ़ा है बहुत

 न लोग चाहतें हैं इसको बे-रिया कर दें ।।

अगर अदू को सबक कुछ सिखाना है तो क्या,

बताएँ उसको भला दोस्तों बता कर दें।।


मरासिमों का भी कुछ रखरखाव लाज़िम है,

मिलें जुलें सभी से रिश्तों को नया कर दें ।।


अना को आप न परवान पर चढ़ाएँ,

 यूँ कि सिर्फ़ ख़ुद के सिवा सबको अनसुना कर दें।।


किसी सबब से ज़रा मनमुटाव हो तो क्या,

हां भर में मुनादी-ए-बेवफ़ा कर दें ।।


ज़मीर आपका गर दे नहीं इजाज़त तो 'तुरंत '

काम वो करने से फिर मना कर दें ।।


 शब्दार्थ-हिरासत-ए-उल्फ़त - प्यार की क़ैद, गिरधारी, रिया- दिखावा, बे-रिया = दिखावा रहित, अदू = शत्रु, मरासिमों संबंधों, लाज़िम आवश्यक, सबब-कारण,मुनादी-ए-बेवफ़ा = बेवफ़ा की घोषणा |

2 comments:

Anonymous said...

Bahut khoobsurat...

Mamta said...

Umda...