काश नहीं को, नहीं पढ़ पाता !
मैं अक्सर सही को, नहीं पढ़ पाता !!
रोज़ रीझ में नए लेख लिखकर, मैं अपनी
लिखारियो के अक्सर, अक्षर नहीं पढ़ पाता !!
बहम की ख्वाहिश है जज्बो का भरम रखूं,
फिर इल्म में नहीं को नहीं पढ़ पाता !!
तहरीर से रिश्तों में पालिश करता हूं, मगर
नफे नुकसान में हासिल को नहीं पढ़ पाता !!
हंगामे, किनाफ, हनी ये उलझते मंज़र,
मैं ऐसे हादसे, ऐसे मंज़र को नहीं पढ़ पाता !!
By :- Honey Kumar
No comments:
Post a Comment