Monday, August 26, 2024

 समझता ही नहीं वो सख़्श अल्फ़ाज़ की गहराई को,
मैने हर वो लफ्ज़ कह दिया जिस में मोहब्बत हो..!!

मेरे तल्ख लफ़्ज़ों पर तुम यूं रूठा ना करो
यूं गैरो से मिल कर मुझे तड़पाया ना करो

Kitni mushkil ke baad tuta hai....!
Ek esa rishta_jo kbhi tha hi nhi....!!

मैं सीधा साधा वनवासी लक्ष्मण हूँ,
तुम मेरे पीछे पड़ी हुई सूर्पनखा प्रिय !

वही पता वही गली वही दरवाज़ा लेकिन।
अपना ही घर मुझे अजनबी सा देखता है।

तेरे गली मे आके खो गये है दोनो
मै दिल को ढूंढता हु दिल तुम्हे

"ज़रा ज़रा समेट कर बनाया है मैंने खुद को"

"मुझसे ये मत कहना मिलेंगे तुम जैसे बहुत"

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