Wednesday, August 31, 2022

 

अपनी मायूस उमंगों का फ़साना न सुना,

मेरी नाकाम मोहब्बत की कहानी मत छेड़

 

तुम्हे उदास सी पाता हूं मैं कई दिन से,

न जाने कौन से सदमे उठा रही हो तुम?

वो शोखियां वो तबस्सुम वो कहकहे न रहे
हर एक चीज को हसरत से देखती हो तुम।

 

मुझमे क्या देखा की तुम उल्फत का दम भरने लगी

मैं तो खुद अपने भी कोई काम आ सकता नहीं

तुम मेरी होकर भी बेगाना ही पाओगी मुझे
मैं तुम्हारा होकर भी तुम में समा सकता नहीं




Sahir ludhiyanvi

 

6. नज़रे-कालिज

ऐ सरज़मीन-ए-पाक़ के यारां-ए-नेक नाम
बा-सद-खलूस शायर-ए-आवारा का सलाम

ऐ वादी-ए-जमील मेंरे दिल की धडकनें
आदाब कह रही हैं तेरी बारगाह में

 

मुसव्विर मैं तेरा शाहकार वापस करने आया हूं

अब इन रंगीन रुख़सारों में थोड़ी ज़िदर्यां भर दे
हिजाब आलूद नज़रों में ज़रा बेबाकियां भर दे
लबों की भीगी भीगी सिलवटों को मुज़महिल कर दे

 

4. यकसूई

अहदे-गुमगश्ता की तस्वीर दिखाती क्यों हो?
एक आवारा-ए-मंजिल को सताती क्यों हो?

वो हसीं अहद जो शर्मिन्दा-ए-ईफा न हुआ
उस हसीं अहद का मफहूम जलाती क्यों हो?

ज़िन्दगी शोला-ए-बेबाक बना लो अपनी
खुद को खाकस्तरे-खामोश बनाती क्यों हो?

मैं तसव्वुफ़ के मराहिल का नहीं हूँ कायल
मेरी तस्वीर पे तुम फूल चढ़ाती क्यों हो

कौन कहता है की आहें हैं मसाइब का इलाज़
जान को अपनी अबस रोग लगाती क्यों हो?

एक सरकश से मुहब्बत की तमन्ना रखकर
खुद को आईने के फंदे में फंसाती क्यों हो?

मै समझता हूँ तकद्दुस को तमद्दुन का फरेब
तुम रसूमात को ईमान बनती क्यों हो?

जब तुम्हे मुझसे जियादा है जमाने का ख़याल
फिर मेरी याद में यूँ अश्क बहाती क्यों हो?

तुममे हिम्मत है तो दुनिया से बगावत कर लो
वरना माँ बाप जहां कहते हैं शादी कर लो

 

अंधियारी रात के आँगन में ये सुबह के कदमों की आहट

ये भीगी-भीगी सर्द हवा, ये हल्की हल्की धुन्धलाहट

गाडी में हूँ तनहा महवे-सफ़र और नींद नहीं है आँखों में
भूले बिसरे रूमानों के ख्वाबों की जमीं है आँखों में

अगले दिन हाँथ हिलाते हैं, पिचली पीतें याद आती हैं
गुमगश्ता खुशियाँ आँखों में आंसू बनकर लहराती हैं

सीने के वीरां गोशों में, एक टीस-सी करवट लेती है
नाकाम उमंगें रोती हैं उम्मीद सहारे देती है

वो राहें ज़हन में घूमती हैं जिन राहों से आज आया हूँ
कितनी उम्मीद से पहुंचा था, कितनी मायूसी लाया हूँ

 

1. रद्दे-अमल

चन्द कलियाँ निशात की चुनकर
मुद्दतों महवे-यास रहता हूँ
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझ से मिलकर उदास रहता हूँ

Sahir ludhiyanvi

 

42. तेरी आवाज़

रात सुनसान थी, बोझल थी फज़ा की साँसें
रूह पे छाये थे बेनाम ग़मों के साए
दिल को ये ज़िद थी कि तू आए तसल्ली देने
मेरी कोशिश थी कि कमबख़्त को नींद आ जाए


देर तक आंखों में चुभती रही तारों की चमक
देर तक ज़हन सुलगता रहा तन्हाई में
अपने ठुकराए हुए दोस्त की पुरसिश के लिए
तू न आई मगर इस रात की पहनाई में

यूँ अचानक तेरी आवाज़ कहीं से आई
जैसे परबत का जिगर चीर के झरना फूटे
या ज़मीनों की मुहब्बत में तड़प कर नागाह
आसमानों से कोई शोख़ सितारा टूटे

शहद सा घुल गया तल्ख़ाबा-ए-तन्हाई में
रंग सा फैल गया दिल के सियहखा़ने में
देर तक यूँ तेरी मस्ताना सदायें गूंजीं
जिस तरह फूल चटखने लगें वीराने में

तू बहुत दूर किसी अंजुमन-ए-नाज़ में थी
फिर भी महसूस किया मैं ने कि तू आई है
और नग़्मों में छुपा कर मेरे खोये हुए ख़्वाब
मेरी रूठी हुई नींदों को मना लाई है

रात की सतह पे उभरे तेरे चेहरे के नुक़ूश
वही चुपचाप सी आँखें वही सादा सी नज़र
वही ढलका हुआ आँचल वही रफ़्तार का ख़म
वही रह रह के लचकता हुआ नाज़ुक पैकर

तू मेरे पास न थी फिर भी सहर होने तक
तेरा हर साँस मेरे जिस्म को छू कर गुज़रा
क़तरा क़तरा तेरे दीदार की शबनम टपकी
लम्हा लम्हा तेरी ख़ुशबू से मुअत्तर गुज़रा

अब यही है तुझे मंज़ूर तो ऐ जान-ए-बहार
मैं तेरी राह न देखूँगा सियाह रातों में
ढूंढ लेंगी मेरी तरसी हुई नज़रें तुझ को
नग़्मा-ओ-शेर की उभरी हुई बरसातों में

अब तेरा प्यार सताएगा तो मेरी हस्ती
तेरी मस्ती भरी आवाज़ में ढल जायेगी
और ये रूह जो तेरे लिए बेचैन सी है
गीत बन कर तेरे होठों पे मचल जायेगी

तेरे नग़्मात तेरे हुस्न की ठंडक लेकर
मेरे तपते हुए माहौल में आ जायेंगे
चाँद घड़ियों के लिए हो कि हमेशा के लिए
मेरी जागी हुई रातों को सुला जायेंगे

Sahir ludhiyanvi

 

29. एक तस्वीरे-रंग

मैं ने जिस वक़्त तुझे पहले-पहल देखा था
तू जवानी का कोई ख़्वाब नज़र आई थी
हुस्न का नग़्म-ए-जावेद हुई थी मालूम
इश्क़ का जज़्बा-ए-बेताब नज़र आई थी

ऐ तरब-ज़ार जवानी की परेशाँ तितली
तू भी इक बू-ए-गिरफ़्तार है मालूम न था
तेरे जल्वों में बहारें नज़र आती थीं मुझे
तू सितम-ख़ुर्दा-ए-इदबार है मालूम न था

तेरे नाज़ुक से परों पर ये ज़र-ओ-सीम का बोझ
तेरी परवाज़ को आज़ाद न होने देगा
तू ने राहत की तमन्ना में जो ग़म पाला है
वो तिरी रूह को आबाद न होने देगा

तू ने सरमाए की छाँव में पनपने के लिए
अपने दिल अपनी मोहब्बत का लहू बेचा है
दिन की तज़ईन-ए-फ़सुर्दा का असासा ले कर
शोख़ रातों की मसर्रत का लहू बेचा है

ज़ख़्म-ख़ुर्दा हैं तख़य्युल की उड़ानें तेरी
तेरे गीतों में तिरी रूह के ग़म पलते हैं
सुर्मगीं आँखों में यूँ हसरतें लौ देती हैं
जैसे वीरान मज़ारों पे दिए जुलते हैं

इस से क्या फ़ाएदा रंगीन लिबादों के तले
रूह जलती रहे घुलती रहे पज़मुर्दा रहे
होंट हँसते हों दिखावे के तबस्सुम के लिए
दिल ग़म-ए-ज़ीस्त से बोझल रहे आज़ुर्दा रहे

दिल की तस्कीं भी है आसाइश-ए-हस्ती की दलील
ज़िंदगी सिर्फ़ ज़र-ओ-सीम का पैमाना नहीं
ज़ीस्त एहसास भी है शौक़ भी है दर्द भी है
सिर्फ़ अन्फ़ास की तरतीब का अफ़्साना नहीं

उम्र भर रेंगते रहने से कहीं बेहतर है
एक लम्हा जो तिरी रूह में वुसअत भर दे
एक लम्हा जो तिरे गीत को शोख़ी दे दे
एक लम्हा जो तिरी लय में मसर्रत भर दे

Sahir ludhiyanvi

 

मेरे नग़्मे भी मिरे पास नहीं रह सकते

तेरे जल्वे किसी ज़रदार की मीरास सही
तेरे ख़ाके भी मिरे पास नहीं रह सकते

Sahir ludhiyanvi

 

ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा ये महल

ये मुनक़्क़श दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़

इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़


Sahir ludhiyanvi - chanke

 

सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं

तअफ़्फ़ुन से पुर नीम-रौशन ये गलियाँ
ये मसली हुई अध खिली ज़र्द कलियाँ
ये बिकती हुई खोखली रंग-रलियाँ
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं
वो उजले दरीचों में पायल की छन छन
तनफ़्फ़ुस की उलझन पे तबले की धन धन
ये बे-रूह कमरों में खाँसी की ठन ठन
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं
ये गूँजे हुए क़हक़हे रास्तों पर
ये चारों तरफ़ भीड़ सी खिड़कियों पर
ये आवाज़े खिंचते हुए आँचलों पर
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं
ये फूलों के गजरे ये पीकों के छींटे
ये बेबाक नज़रें ये गुस्ताख़ फ़िक़रे
ये ढलके बदन और ये मदक़ूक़ चेहरे
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं
ये भूकी निगाहें हसीनों की जानिब
ये बढ़ते हुए हाथ सीनों की जानिब
लपकते हुए पाँव ज़ीनों की जानिब
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं









 

ये पुर-पेच गलियाँ ये बे-ख़्वाब बाज़ार

ये गुमनाम राही ये सिक्कों की झंकार
ये इस्मत के सौदे ये सौदों पे तकरार

Sahir ludhiyanvi 




 https://www.hindi-kavita.com/HindiTalkhiyanSahirLudhianvi.php#Talkhiyan54


Sahir ludhiyanvi talkhiyan poetry link above 

 

अपनी मायूस उमंगों का फ़साना न सुना,

मेरी नाकाम मोहब्बत की कहानी मत छेड़

sahir ludhiyanvi 



Wednesday, August 17, 2022

में बन जाऊंगा कण कोई फलक में,

तुम चांद देखना हम ज़मीन देखेंगे ।।


फिर देखोगी तुम मुझे ताज़्जुब भरी नज़रों से,

और हम तुझे होते गमगीन देखेंगे ।।


जो रखते है ईश्वर पर, और खुदा पे भरोसा,

हनी वो बंदे अंधेरों में भी महरीन देखेंगे ।।

मंज़र हसीन देखेंगे...

ज़िन्दगी में कभी मंज़र हसीन देखेंगे ।
खुशी को घर में होते मकीन देखेंगे ।।

Monday, August 15, 2022

जिंदगी कहना पड़ा...

 रंज और गम को ज़िन्दगी कहना पड़ा ।

जुल्म की रात को रोशनी कहना पड़ा ।।

आज़ाद होता हैं

कही मंसूर होता है कही फरहाद होता हैं ।।

कैद ऐ मोहब्बत से हनी कोई कहा आजाद होता हैं।

मेरी डायरी से P 15

ना जाने ये किसकी याद आ गई ..।।
जो मेरे लहू, जिगर, दिल गरमा गई..।।

मशला...

 मुझसे कोई मशला हैं तो मुझसे बोल ।

हनी भैद सारे मेरे सुपुर्द खोल ।।


बेवजह यूं तकरार से की फायदा,

नज़ाकत को नशीहत से मत तोल ।।

Sunday, August 14, 2022

ज़िन्दगी P 16

 वही ये आंसू सारे, वही ये माजी के किस्से सारे,,,

जिसे देखो वो ही मारे हुए को मारे जाते ....।।

ज़िन्दगी P 15

 वो लोग किस दर्द से गुज़रे होंगे...।।

जिनके हमदर्द अपने वादे से मुकरे होंगे...।।

मेरी डायरी से पी 14

 खूब जमेगा रंग जब मिल बैठेंगे हम दोनों

कातिल आदये तेरी, उसपे आशिक मिजाज़ मेरा



Saturday, August 13, 2022

जिंदगी P 14

 तेरी यादों के नशे में चूर हो रहा हूं ।।

लिखता हूं तुझे और मशहूर हो रहा हूं।।


मेरी डायरी से P 12

 हवा ओढनिया से हांक दे न !!

तनिक इक बेर खिड़की से झांक दे न !!

Wednesday, August 10, 2022

महबूब की गली...

 बात निकल है तो बात चली होगी।
शायद कुछ ख़ास महबूब की गली होगी।।

दर्द, जुदाई, दबा के सीने में,
उदास सी सुनहरी शाम ढली होगी।।

खूब हस रहा है तू भरी महफिल में,
लगता है अरमानों की होली जली होगी।।

ज़िन्दगी P 13

 आज को रात फिर दर्द दिल में हुआ हैं..!!

काम आई नहीं कोई दावा या दुआ हैं..!!

तेरे बगैर...

तेरी याद के सिवा कोई काम नहीं।
दिले बीमार को अब आराम नहीं।।

Tuesday, August 2, 2022

ज़िन्दगी P 12

 पूछता नहीं अब कोई तेरे इस दीवाने को..!!

तू भी मिलता हैं तो बस

मिलता है कसम खाने को ...!!

Monday, August 1, 2022

मेरी डायरी से

गुमशुदा हो में आज कल खुद से

देखो ज़रा कही मैं तुम्हारे पास तो नहीं??