Wednesday, August 31, 2022

Sahir ludhiyanvi - chanke

 

सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं

तअफ़्फ़ुन से पुर नीम-रौशन ये गलियाँ
ये मसली हुई अध खिली ज़र्द कलियाँ
ये बिकती हुई खोखली रंग-रलियाँ
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं
वो उजले दरीचों में पायल की छन छन
तनफ़्फ़ुस की उलझन पे तबले की धन धन
ये बे-रूह कमरों में खाँसी की ठन ठन
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं
ये गूँजे हुए क़हक़हे रास्तों पर
ये चारों तरफ़ भीड़ सी खिड़कियों पर
ये आवाज़े खिंचते हुए आँचलों पर
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं
ये फूलों के गजरे ये पीकों के छींटे
ये बेबाक नज़रें ये गुस्ताख़ फ़िक़रे
ये ढलके बदन और ये मदक़ूक़ चेहरे
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं
ये भूकी निगाहें हसीनों की जानिब
ये बढ़ते हुए हाथ सीनों की जानिब
लपकते हुए पाँव ज़ीनों की जानिब
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं









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