Wednesday, June 3, 2020

दोस्ती रही महज़ नाम की।

जरुरत  में  ना किसी काम की। 
अपनी दोस्ती रही  महज़ नाम की। 

Sunday, May 17, 2020

मैं रोज़ आँखों

मैं रोज़ आँखों से पानी बहता हूँ,
ये सोचकर के सफर सुनहरा है... 
मगर कोई नज़राना नहीं। 

में कभी सोचता हूँ.... 
के ये कैसी लो है कंदील के जैसी,
जिसमे बदन का जलना तो पसंद है, 
मगर सुलगना नहीं। 

मैं कभी सोचता हूँ के .... 
ये कैसी रात है जो कटती नहीं, 
जिसमे मुझे आँखे तो बंद करनी हैं 
मगर सोना नहीं। 

कभी सोचता हूँ......  
मुझे घर से तो नकलना है ,
पर क्या आँखों में सपना नहीं। 

कभी सोचता हूँ। ...... 
क्या मेरे अपने मेरे साथ खड़े है, 
पर सच झूठ है बहाना नहीं।

कभी सोचता हूँ। ....  
के अगर वो मिल जाये किसी मोड़ पर ,
उसे सब कुछ कह दूंगा साँसे साँसो में उलझा दूँगा,
 मगर ऐसा कोई फशाना नहीं। 

Monday, May 11, 2020

कोई जोर नहीं चलता


किसी की चीज पर मेरा,

कोई जोर नहीं चलता !
अपना वस, अपने पे चलता है,
कहीं ओर नहीं चलता !
££ ££ ©©©©
ये तो वक्त हैं बदलना फिदरत इसकी,
सदा किसी का दौर नहीं चलता !
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जाना था गाँव मगर
फसकर रह गया हनी,
लॉक डाऊन में कोई वाहन
हरामखौर नहीं चलता !
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और ऐसा क्या है तुझमें ऐ ज़ालिम,
जो तेरे सिवा इस दिल में,
कोई हौर नहीं चलता !
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Written by :- Honey A. Dhara
May 12 , 2020

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Tuesday, April 14, 2020

कोई इमाम नहीं होता !

मुझपर गुनाह लाख मगर, 
वाजिब मेरा एक इल्ज़ाम नही होता !
यारों दोस्ती में क्या दीन और क्या धर्म,
इसमें तो कोई इमाम नहीं होता !
कोई बात है जो फाँस बनकर चुभी सिने में,
इसलिए परमिन्दर को हम से कोई काम नहीं होता !
रोक लिए हल्कि सी आहट से चरन,
खैर छोडो, ये खूलाशा सरेआम नहीं होता !
और बात रूकी हैं अब जिरह पर, 
यहाँ मुफ्लिशी में बताओ कौन बदनाम नहीं होता !
वो कहते है कि टूटे धागा तो गाठ पड जाये, 
ऐसे ही दोस्ती में फिर ऐहतराम नहीं होता !



Written by :- Honey A. Dhara
April  14 , 2020
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Monday, April 13, 2020

नहीं आता। by #Honey_Awara_Shayar

क्या वाकई तुझे मेरा एहसास नहीं होता। 
क्या वाकई में तेरे ख्वाबो में नहीं होता। 

मिट्टी बाँध कर.. by #Honey_Awara_Shayar

आज एक कबुतर उड़ाया,
पैरो में चिठ्ठी बाँध कर। 
वो बैरण माँगती है मुझे,
हाथो की मुट्ठी बाँध कर।।

फर्जी निकले honeyawara


उसके सब नाजो अदा,
सब पहरन, फर्जी निकले !

Friday, April 3, 2020



हम इश्क़ में आख़िर रहे कितने दिन।
आधा साल यानी अँगुली पर गिनती के ,
कुछ महीने और कुछ दिन। 

ये सोच कर मेरा जहन उलझ रहा है। 
बदन बनकर नरम गोसा उधड़ रहा हैं। 

Written by :- Honey A. Dhara
April  03  , 2020
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Friday, March 20, 2020

अदभुद शायरी कोरोना वायरस

तुम जो इतना छीके जा रहे हो।
क्या तुम कोरोना छिपा रहे हो। 
गले में खाँसी और मास्क मुँह पर ,
क्या तुम भी इटली से आ रहे हो।

(कैफ आजमी जूनियर ) 

कोई हाथ भी न मिलाएगा ,
जो गले में थोड़ी खराश हो
ये कोरोना 19  का जहर है ,
बड़े फैशले से मिला करो।

( बशीर बद्र  - II  )

नएकमरे में सेनिटाइज़र,
पुराने कौन रखता है।
बिना ग्लोब्ज़ पहने अब
फ्रिज में पानी कौन रखता है।

हमीं एक मास्क मुद्दत से पहने है
अब टॉक वार्ना ,
सलीके से कोरोना की निशानी कौन रखता है।

स्त्रोत :- अख़बार 

कोरोना वायरस शायरी

हजारों मास्क की ख्वाहिश की
हर ख्वाहिश पर दम निकले।

करू जो क्लीन हाथो को तो ,
साबुन हद से कम निकले।

सुना है की जब कोरोना,
तेरे मोहल्ले में आया,
बहुत बेआबरू होकर तेरे
कूचे से हम निकले।

( मिर्ज़ा ग़ालिब द्वितीय )

तुझे आती है खाँसी,
ये बता देती तो अच्छा था।

मेरा तू आईसोलेशन
करा देती तो अच्छा था।

तेरे माथे पे ये आँचल ,
बहुत ही खूब है,
लेकिन इसे कटवा के गर ,
तू मास्क बनवाती तो अच्छा था।

(मज़ाज़ लखनवी  तृतीया )

Monday, March 9, 2020

जब आयी होली रंग भरी -2

पोशाक छिड़कवाँ से हर जा,
तैयारी रंगी पोशो की!
और भीगी जगह रंगो से,
हुई जिनंत सब आगोशो की !!


जब आयी होली रंग भरी

जब आयी होली रंग भरी,
सौ नाज़ो अदा से मटक मटक !
और घूँघट के पट खोल दिए,
वह रूप दिखया चमक चमक !


Saturday, March 7, 2020

शहरे आशोब भाग २ नज़ीर अकबराबादी

कोई पुकारता है पड़ा ‘भेज’ या ‘ख़ुदा’ ।
अब तो हमारा काम थका भेज या ख़ुदा ।
कोई कहे है हाथ उठा भेज या ख़ुदा ।
ले जान अब हमारी तू या भेज या ख़ुदा ।

शहरे आशोब भाग १ नज़ीर अकबराबादी


है अब तो कुछ सुख़न२ का मेरे कारोबार बंद ।

रहती है तबअ३ सोच में लैलो निहार४ बंद ।
दरिया सुख़न की फ़िक्र का है मौज दार बंद ।
हो किस तरह न मुंह में जुबां बार बार बंद ।

बाबा....

बटमार अजल का आ पहुँचा, टक उसको देख डरो बाबा
अब अश्क बहाओ आँखों से और आहें सर्द भरो बाबा
दिल, हाथ उठा इस जीने से, ले बस मन मार, मरो बाबा

रोटियां।

जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियां।
फूली नहीं बदन में समाती हैं रोटियां॥
आंखें परीरुखों से लड़ाती हैं रोटियां।
सीने ऊपर भी हाथ चलाती हैं रोटियां॥

जब लाद चलेगा बंजारा॥

टुक हिर्सो-हवा[1] को छोड़ मियां, मत देस विदेश फिरे मारा।
क़ज़्ज़ाक़[2] अजल[3] का लूटे है, दिन रात बजाकर नक़्क़ारा।

देख बहारें होली की।

जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।

होली की बहार।।

हिन्द के गुलशन में जब आती है होली की बहार।
जांफिशानी चाही कर जाती है होली की बहार।।

एक तरफ से रंग पड़ता, इक तरफ उड़ता गुलाल।
जिन्दगी की लज्जतें लाती हैं, होली की बहार।।

Thursday, March 5, 2020

"मुस्कुरा" देता हूँ..!

बेवक़्त, बेवजह, बेहिसाब
"मुस्कुरा" देता हूँ..!

आधे दुश्मनो को तो


यु ही "हरा" देता हूँ..!

और भले ही लाख रोया हूँ मै.
पर एक दफ़ा तो,
रोते हुए को हँसा देता हूँ..!

Monday, March 2, 2020

है दिल की बात..,
मग़र तुझसे खोल रहा हूँ !

के मैं चुप्पियों में भी,
आज बहुत बोल रहा हूँ !!

Monday, February 3, 2020

पंख तो दिए पर छीन लिए।

मैंने अपने सब सपने कील लिए।
. . . खैर छोड़ो उसका क्या ?
मेरी आँखे जागे बिन नींद लिए।
. . . खैर छोड़ो उसका क्या ?
हम आँखे मुंध कर चले तेरे कदमो पर,
तूने मुझसे मेरे रास्ते छीन लिए
. . . खैर छोडो उसका क्या ?
मगर हदिशा तो ये रहा हमरे साथ,
तूने पंख तो दिए पर छीन लिए। 
. . . खैर छोडो उसका क्या ?

Written by :- Honey A. Dhara
February  03  , 2020
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मैंने मुफ़लिसी देखी हैं।



मैंने चौखट पर सर पटकती मुफ़लिसी देखी है। 
मैंने बच्चो में लड़ती झगड़ती मुफ़लिसी देखी है। 

Thursday, January 30, 2020

जो मैंने पाले रखा भरम। . . . उसका क्या।

जो मैंने खोयी ख़ुशी।  . . उसका क्या। 
जो मैंने पाये ग़म।  . .  उसका क्या। 
अब तू मेरे हालत को देखकर उदास क्यों है,
जो तूने दिए ग़म।  . . . उसका क्या।


Wednesday, January 8, 2020