मुझपर गुनाह लाख मगर,
वाजिब मेरा एक इल्ज़ाम नही होता !
यारों दोस्ती में क्या दीन और क्या धर्म,
इसमें तो कोई इमाम नहीं होता !
कोई बात है जो फाँस बनकर चुभी सिने में,
इसलिए परमिन्दर को हम से कोई काम नहीं होता !
रोक लिए हल्कि सी आहट से चरन,
खैर छोडो, ये खूलाशा सरेआम नहीं होता !
और बात रूकी हैं अब जिरह पर,
यहाँ मुफ्लिशी में बताओ कौन बदनाम नहीं होता !
वो कहते है कि टूटे धागा तो गाठ पड जाये,
ऐसे ही दोस्ती में फिर ऐहतराम नहीं होता !
Written by :- Honey A. Dhara
April 14 , 2020
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