गीले बहुत थे मगर बार बार क्या करते..!!
तेरी ही ज़फ़ा पे तुझे शर्सार क्या करते ...!!
गर्मी पर आ गयी हैं नज़र चस्मे यार की ।
तक़दीर लड़ गयी है दिल दाग दार की ।।
मज़बूरिया हयात की, सबर आजमा नहीं,
लग जाती है कभी नज़र भी इख़्तेयार की ।।
शर्मिंदा और गुन्हा की इज़त न पूछिये,
शर्मिंदगी से बनी बात फिर शर्मशार की ।।
सागर छलक उठेंगा अभी महताब का,
हसरत से ताक रही नज़र मयगुसार की ।।
तुझको रोशन रखे और उजाला करे ।
किस तरह हम खुद को सितारा करें ।।
कहने वाले तो ये भी कहते है,
हम मोहब्बत नहीं दिखावा करें ।।
फिक्र जिसको नहीं हमारी कोई,
किस लिए फिर उसको हम पुकारा करे ।
जब नहीं बना सादगी से काम
हम ने खुद को कहा दिखावा करे ।
उनसे रखना ही क्यों तवक्वो कोई,
अपना मुश्किल से जो गुजारा करें ।।
मैं तेरी ज़िन्दगी से कुछ यूं चला जाऊंगा मेरी जान...
जैसे हादसों में जान चली जाया करती हैं....!!
ना कलमा याद आता हैं..
ना दिल लगता है ननाज़ो में एक बार..!!
कुफर बना दिया हैं हम सबको..
महज़ दो दिन की मोहब्बत ने यार..!!
मुझमे क्या देखा की तुम उल्फत का दम भरने लगी
मैं तो खुद अपने भी कोई काम आ सकता नहीं
तुम मेरी होकर भी बेगाना ही पाओगी मुझे
मैं तुम्हारा होकर भी तुम में समा सकता नहीं
अहदे-गुमगश्ता की तस्वीर दिखाती क्यों हो?
एक आवारा-ए-मंजिल को सताती क्यों हो?
वो हसीं अहद जो शर्मिन्दा-ए-ईफा न हुआ
उस हसीं अहद का मफहूम जलाती क्यों हो?
ज़िन्दगी शोला-ए-बेबाक बना लो अपनी
खुद को खाकस्तरे-खामोश बनाती क्यों हो?
मैं तसव्वुफ़ के मराहिल का नहीं हूँ कायल
मेरी तस्वीर पे तुम फूल चढ़ाती क्यों हो
कौन कहता है की आहें हैं मसाइब का इलाज़
जान को अपनी अबस रोग लगाती क्यों हो?
एक सरकश से मुहब्बत की तमन्ना रखकर
खुद को आईने के फंदे में फंसाती क्यों हो?
मै समझता हूँ तकद्दुस को तमद्दुन का फरेब
तुम रसूमात को ईमान बनती क्यों हो?
जब तुम्हे मुझसे जियादा है जमाने का ख़याल
फिर मेरी याद में यूँ अश्क बहाती क्यों हो?
तुममे हिम्मत है तो दुनिया से बगावत कर लो
वरना माँ बाप जहां कहते हैं शादी कर लो
रात सुनसान थी, बोझल थी फज़ा की साँसें
रूह पे छाये थे बेनाम ग़मों के साए
दिल को ये ज़िद थी कि तू आए तसल्ली देने
मेरी कोशिश थी कि कमबख़्त को नींद आ जाए
देर तक आंखों में चुभती रही तारों की चमक
देर तक ज़हन सुलगता रहा तन्हाई में
अपने ठुकराए हुए दोस्त की पुरसिश के लिए
तू न आई मगर इस रात की पहनाई में
यूँ अचानक तेरी आवाज़ कहीं से आई
जैसे परबत का जिगर चीर के झरना फूटे
या ज़मीनों की मुहब्बत में तड़प कर नागाह
आसमानों से कोई शोख़ सितारा टूटे
शहद सा घुल गया तल्ख़ाबा-ए-तन्हाई में
रंग सा फैल गया दिल के सियहखा़ने में
देर तक यूँ तेरी मस्ताना सदायें गूंजीं
जिस तरह फूल चटखने लगें वीराने में
तू बहुत दूर किसी अंजुमन-ए-नाज़ में थी
फिर भी महसूस किया मैं ने कि तू आई है
और नग़्मों में छुपा कर मेरे खोये हुए ख़्वाब
मेरी रूठी हुई नींदों को मना लाई है
रात की सतह पे उभरे तेरे चेहरे के नुक़ूश
वही चुपचाप सी आँखें वही सादा सी नज़र
वही ढलका हुआ आँचल वही रफ़्तार का ख़म
वही रह रह के लचकता हुआ नाज़ुक पैकर
तू मेरे पास न थी फिर भी सहर होने तक
तेरा हर साँस मेरे जिस्म को छू कर गुज़रा
क़तरा क़तरा तेरे दीदार की शबनम टपकी
लम्हा लम्हा तेरी ख़ुशबू से मुअत्तर गुज़रा
अब यही है तुझे मंज़ूर तो ऐ जान-ए-बहार
मैं तेरी राह न देखूँगा सियाह रातों में
ढूंढ लेंगी मेरी तरसी हुई नज़रें तुझ को
नग़्मा-ओ-शेर की उभरी हुई बरसातों में
अब तेरा प्यार सताएगा तो मेरी हस्ती
तेरी मस्ती भरी आवाज़ में ढल जायेगी
और ये रूह जो तेरे लिए बेचैन सी है
गीत बन कर तेरे होठों पे मचल जायेगी
तेरे नग़्मात तेरे हुस्न की ठंडक लेकर
मेरे तपते हुए माहौल में आ जायेंगे
चाँद घड़ियों के लिए हो कि हमेशा के लिए
मेरी जागी हुई रातों को सुला जायेंगे
मैं ने जिस वक़्त तुझे पहले-पहल देखा था
तू जवानी का कोई ख़्वाब नज़र आई थी
हुस्न का नग़्म-ए-जावेद हुई थी मालूम
इश्क़ का जज़्बा-ए-बेताब नज़र आई थी
ऐ तरब-ज़ार जवानी की परेशाँ तितली
तू भी इक बू-ए-गिरफ़्तार है मालूम न था
तेरे जल्वों में बहारें नज़र आती थीं मुझे
तू सितम-ख़ुर्दा-ए-इदबार है मालूम न था
तेरे नाज़ुक से परों पर ये ज़र-ओ-सीम का बोझ
तेरी परवाज़ को आज़ाद न होने देगा
तू ने राहत की तमन्ना में जो ग़म पाला है
वो तिरी रूह को आबाद न होने देगा
तू ने सरमाए की छाँव में पनपने के लिए
अपने दिल अपनी मोहब्बत का लहू बेचा है
दिन की तज़ईन-ए-फ़सुर्दा का असासा ले कर
शोख़ रातों की मसर्रत का लहू बेचा है
ज़ख़्म-ख़ुर्दा हैं तख़य्युल की उड़ानें तेरी
तेरे गीतों में तिरी रूह के ग़म पलते हैं
सुर्मगीं आँखों में यूँ हसरतें लौ देती हैं
जैसे वीरान मज़ारों पे दिए जुलते हैं
इस से क्या फ़ाएदा रंगीन लिबादों के तले
रूह जलती रहे घुलती रहे पज़मुर्दा रहे
होंट हँसते हों दिखावे के तबस्सुम के लिए
दिल ग़म-ए-ज़ीस्त से बोझल रहे आज़ुर्दा रहे
दिल की तस्कीं भी है आसाइश-ए-हस्ती की दलील
ज़िंदगी सिर्फ़ ज़र-ओ-सीम का पैमाना नहीं
ज़ीस्त एहसास भी है शौक़ भी है दर्द भी है
सिर्फ़ अन्फ़ास की तरतीब का अफ़्साना नहीं
उम्र भर रेंगते रहने से कहीं बेहतर है
एक लम्हा जो तिरी रूह में वुसअत भर दे
एक लम्हा जो तिरे गीत को शोख़ी दे दे
एक लम्हा जो तिरी लय में मसर्रत भर दे
मुझसे कोई मशला हैं तो मुझसे बोल ।
हनी भैद सारे मेरे सुपुर्द खोल ।।
बेवजह यूं तकरार से की फायदा,
नज़ाकत को नशीहत से मत तोल ।।
वही ये आंसू सारे, वही ये माजी के किस्से सारे,,,
जिसे देखो वो ही मारे हुए को मारे जाते ....।।
बात निकल है तो बात चली होगी।
शायद कुछ ख़ास महबूब की गली होगी।।
दर्द, जुदाई, दबा के सीने में,
उदास सी सुनहरी शाम ढली होगी।।
खूब हस रहा है तू भरी महफिल में,
लगता है अरमानों की होली जली होगी।।
पूछता नहीं अब कोई तेरे इस दीवाने को..!!
तू भी मिलता हैं तो बस
मिलता है कसम खाने को ...!!
क्या किसी को देखना भी इतना ज़रूरी हैं ।।
बहुत रोया तुम्हारे बिन सुनो इस बार सावन में
चले आओ इधर भी तुम सुनो इस बार सावन में || १
हमारे दिल पे क्या क्या गुजरी, अलामत भूल जाए क्या..!
उदासी, दर्द, रंज और गम, जलालत भूल जाए क्या..!!
महफ़िल में चल रही थीं
हमारे कत्ल की तयारी ।।
हम पहुंचे तो वो बोले
बहुत लंबी उमर है तुम्हारी।।
मैने कभी चाहा नही के..
मुझे कहीं करार मिले...!!
हम जब भी कही मिले...
बेकरार मिले ...!!
तेरी फेंकी हुई चीज़े मुझे हजारों में मिलती हैं।।
तेरे बाद क्लास में उनकी नीलामी जो लगती हैं।।
तुम बेवफा हो तुमसे ही मुलाकात करेंगे।
शायाने इश्क जो न हो वो ही बात करेंगे ।।
रूश्वा जनुने शौक के जज्बात करेंगे ।।
जिक्र उस जफा शियार का दिन रात करेगें।।
A. सहनी
अर्ज के मतलब को भी गीला समझते हैं ।
क्या कहा मैंने वो क्या समझते हैं ।।
सरे साहिल डूबो दिया हमको...
तुझे ऐ नाखुदा हम खुदा समझते हैं ।।
तेरी ख्वाहिसे, रंजिसे, और आजमाईशे,
भला इन सब से मुझे होश कहां ।।
Written By :- Honey "Awara"
दुनिया के बहुत से रंग
महज़ एक आज़ाब थोड़ी हैं।।
ये फूल दिल हैं मेरा,
महज़ एक गुलाब थोड़ी हैं ।।
Written By :- Honey "Awara"
ये तेरी ज़ुल्फो के कसीदे
मुझपे जाने कितने वार करे हैं ।।
मैं तो तुझपे मरता है...
क्या तु भी मुझेसे प्यार करे है ।।
Written By :- Honey A. Dhara
एक ये भी जुर्म है मेरे फर्दे गुनाह में ।।
दो चार दिन रहा था मैं तुम्हारी निग़ाह में ।।
आंखे झूठ, नजारा झूठ ।।
जो देखा निकला वो सारा झूठ ।।
मुझे तुम आज फिर कहो अपना,
बोलो आज फिर दुबारा झूठ ।।
Written by :- Honey A. Dhara
DOW - May 29, 2018
जवानी को यूं खाली बिताना...
खाली बिताना भी एक समस्या है ।।
लगा लो दिल अगर कहीं तो दिल लगाना...
दिल लगाना भी एक समस्या है ।।
क्यो अडे हो अब तक
तुम मोहब्बत की बात में..!!
अरे वो तो जवान लड़की थी
कह दिया होगा जज्बात में..!!
:- Honey A. dhara
वक़्त के ना जाने कितने,
लम्हो से गुज़रना है मुझे ।।
इस जिंदगी में ना जाने कितने,
तारिको से मरना है मुझे ।।
तेरा गम है कोई या फ़िर दर्द,
रात कटती है कालेजा थाम के ।।
ये चुपके चुपके सिस्किया कौन लेता है,
सब के सन्नाटे का दामन थाम के ।।
आज तक समझा न मेरे दर्द को कोई
ये हमदर्द भी रहे हमदर्द नाम के ।।
गेशु दराज़, मस्त नज़र, और चेहरा आफ़ताब
यार अब कुछ कमी नहीं बची तुम्हारे शबाब में ...
तर्ज़े ज़फा नई नई रंगे...
और सितम नए नए ।।
होते हैं बज्मे नाज़ में...
हम पर करम नए नए ।।